संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) का आदिवासी पहचान
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) का आदिवासी पहचान
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) का आदिवासी पहचान अधिनियम के
अनुसार...
अपने को आदिवासी साबित करने के लिये या
आदिवासी की अनुसूची मे आने के लिये निम्न शर्ते हैं......
1.उनकी
अपनी टोटम /गोत्र व्यवस्था होनी चाहिए.......
2.उनकी अपनी भाषा होनी चाहिए.........
3.उनकी अपनी नियम
होनी चाहिये ।
अलग व विशिष्ट रीति रिवाज होने चाहिये.
इन शर्तों मे किसी एक के भी ना होने की स्थिति
में...वह आदिवासी का नही माना जायेगा....और आदिवासियों को मिले समस्त संवैधानिक अधिकारों से वह
वंचित रह जायेगा..धर्मांतरण से ये अपनी भाषा रीति रिवाज
भूलते जा रहे हैं....ये विकट समस्या है....साथ ही आदिवासियों
का हिन्दुकरन ईसाईकरन और अत्याधुनिकता के प्रभाव से अपने
समस्त लक्षणों को भूलते जा रहे जिस दिन हम UNO द्वारा
निर्धारित समस्त शर्तों मे से किसी एक का भी पालन नही
कर पायेगा वह आदिवासी के समस्त सुविधाओं से
वंचित हो जायेगा....UNO का सर्वेक्षण हर 10 year मे होता
हैं.....जिसके अनुसार भारत सरकार को निर्देश होता है......और
ट्राईबल्स क्षेत्र मे अकूत संसाधन भरे पड़े है ।
जिन पर
विदेशीयो की नजरे टिकी हुई हैं पर संविधान की 5th और 6thसेड्यूल
अनुसूची इन विदेशीयो के सपनों का सबसे बड़ी रूकावट
हैं...जिसके अनुसार आदिवासियों की जमीनो पर पंचायत के
मंजूरी के बिना और स्वयं स्वीकृति के बिना जमीन पर
अधिग्रहण नही कर सकते....इन्हीं रुकावटों के चलते इनके मंसूबे
कामयाब नही हो पा रहे ...जिसको पूरा करने के लिये हर संभव प्रयास जारी है ताकि
इन क्षेत्रों के अपार संम्पदाओ का दोहन कर सके...ये कई तरह के
चाल चल रहे....इन भोले भाले आदिवासियों को बरगलाकर
धर्मांतरण,,स्थानांतरण के लिये के मजबूर कर रहे.....बाहरी लोग
चाहते है कि किसी भी तरीके से इन सम्पदाओ पर इनका
कब्जा हो...इन मुख्य और ज्वलंत कारणों से...अगर हमे हमारे
अस्तित्व जल जंगल और जमीन और संस्कृति की रक्षा करनी है तो
धार्मिक स्वतंत्रता पहला कदम हो सकता हैं....
@@हिन्दुकरण और ईसाईकरन@@- ये सबसे बडी और भयावह
समस्या है .....चूंकि आदिवासी अपने रीति रिवाजो द्वारा
शासित होते हैं उनके इन विशिष्ट समूहों का कोई धर्म कोड.
नही है और इसी अनभिग्यता का फायदा उठा कई हिन्दू
संगठन आदिवासियों/मूलवासियो मे हिन्दुत्व का प्रचार
करने मे लगे हैं और अपनीरीति रिवाजों परम्पराओं ईश्वरो
त्योहारो को लादकर उनके मूल संस्कृति से वंचित करने का
अच्छी प्लानिंग हो रही है...वहीं....ईसाई मिशनरी भी
अपनी संख्या बढ़ाने के नाम पर सुविधाओं का लालच दिखाकर
उनके मूल संस्कृति से दूर कर रही है.......इस तरह जब ये आदिवासी
अपनी समस्त रीतियाँ परम्पराओं भाषा समाजिक व्यवस्था
को भूल जायेंगे ....तब से ये समस्त सवैंधानिक अधिकार जो अभी
प्राप्त है ...10-20 साल बाद खतम हो जायेंगे क्यूंकि उस समय
सभी आदिवासी अपना सब कुछ भुला चुके होगें...जैसे आज भी
कई लोग अपना सबकुछ मूल संस्कृति भूल चुके है....इस प्रकार ये
UNO.के St identification criteria को follow नही करपायेंगे
और प्रदत्त समस्त सुविधाओं से वंचित कर दिये जांयेगे..
पोस्टby-डा. *महेंद्रसयाम
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) का आदिवासी पहचान अधिनियम के

अपने को आदिवासी साबित करने के लिये या
आदिवासी की अनुसूची मे आने के लिये निम्न शर्ते हैं......
1.उनकी
अपनी टोटम /गोत्र व्यवस्था होनी चाहिए.......
2.उनकी अपनी भाषा होनी चाहिए.........
3.उनकी अपनी नियम
होनी चाहिये ।
अलग व विशिष्ट रीति रिवाज होने चाहिये.
इन शर्तों मे किसी एक के भी ना होने की स्थिति
में...वह आदिवासी का नही माना जायेगा....और आदिवासियों को मिले समस्त संवैधानिक अधिकारों से वह
वंचित रह जायेगा..धर्मांतरण से ये अपनी भाषा रीति रिवाज
भूलते जा रहे हैं....ये विकट समस्या है....साथ ही आदिवासियों
का हिन्दुकरन ईसाईकरन और अत्याधुनिकता के प्रभाव से अपने
समस्त लक्षणों को भूलते जा रहे जिस दिन हम UNO द्वारा
निर्धारित समस्त शर्तों मे से किसी एक का भी पालन नही
कर पायेगा वह आदिवासी के समस्त सुविधाओं से
वंचित हो जायेगा....UNO का सर्वेक्षण हर 10 year मे होता
हैं.....जिसके अनुसार भारत सरकार को निर्देश होता है......और

जिन पर
विदेशीयो की नजरे टिकी हुई हैं पर संविधान की 5th और 6thसेड्यूल
अनुसूची इन विदेशीयो के सपनों का सबसे बड़ी रूकावट
हैं...जिसके अनुसार आदिवासियों की जमीनो पर पंचायत के
मंजूरी के बिना और स्वयं स्वीकृति के बिना जमीन पर
अधिग्रहण नही कर सकते....इन्हीं रुकावटों के चलते इनके मंसूबे
कामयाब नही हो पा रहे ...जिसको पूरा करने के लिये हर संभव प्रयास जारी है ताकि
इन क्षेत्रों के अपार संम्पदाओ का दोहन कर सके...ये कई तरह के
चाल चल रहे....इन भोले भाले आदिवासियों को बरगलाकर
धर्मांतरण,,स्थानांतरण के लिये के मजबूर कर रहे.....बाहरी लोग
चाहते है कि किसी भी तरीके से इन सम्पदाओ पर इनका
कब्जा हो...इन मुख्य और ज्वलंत कारणों से...अगर हमे हमारे
अस्तित्व जल जंगल और जमीन और संस्कृति की रक्षा करनी है तो
धार्मिक स्वतंत्रता पहला कदम हो सकता हैं....
@@हिन्दुकरण और ईसाईकरन@@- ये सबसे बडी और भयावह
समस्या है .....चूंकि आदिवासी अपने रीति रिवाजो द्वारा
शासित होते हैं उनके इन विशिष्ट समूहों का कोई धर्म कोड.
नही है और इसी अनभिग्यता का फायदा उठा कई हिन्दू
संगठन आदिवासियों/मूलवासियो मे हिन्दुत्व का प्रचार
करने मे लगे हैं और अपनीरीति रिवाजों परम्पराओं ईश्वरो
त्योहारो को लादकर उनके मूल संस्कृति से वंचित करने का
अच्छी प्लानिंग हो रही है...वहीं....ईसाई मिशनरी भी
अपनी संख्या बढ़ाने के नाम पर सुविधाओं का लालच दिखाकर
उनके मूल संस्कृति से दूर कर रही है.......इस तरह जब ये आदिवासी
अपनी समस्त रीतियाँ परम्पराओं भाषा समाजिक व्यवस्था
को भूल जायेंगे ....तब से ये समस्त सवैंधानिक अधिकार जो अभी
प्राप्त है ...10-20 साल बाद खतम हो जायेंगे क्यूंकि उस समय
सभी आदिवासी अपना सब कुछ भुला चुके होगें...जैसे आज भी
कई लोग अपना सबकुछ मूल संस्कृति भूल चुके है....इस प्रकार ये
UNO.के St identification criteria को follow नही करपायेंगे
और प्रदत्त समस्त सुविधाओं से वंचित कर दिये जांयेगे..
पोस्टby-डा. *महेंद्रसयाम
A/c bharat sarkar kutumb parivar government of India non judicial desh chhe
ReplyDeleteA/c
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